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एक सेठ थे जो गुड़ बाटने गाँव में गए. उनकी मुलाकात एक बच्ची से हुई जिसने गुड़ लेने से मन करदिया. सेठ ने उससे पूछा कि क्यों नहीं चाहिए? बच्ची मुस्कुराते हुए बोलने लग, "मेरी माताजी ने सिखाया है कि कोई भी चीज़ मुफ्त में नहीं लेनी चाहिए।" सेठ ने तुरंत माताजी से मिलने की इच्छा व्यक्त की. बच्ची सेठजी को अपने घर लेजाती हैं, एक टूटी सी झोपड़ी हैं जहां उनकी माताजी खाना बना रही होती हैं. सेठजी माताजी से पूछते हैं, "तुमने अपनी बेटी को ये सीख दी है कि मुफ्त में कोई चीज़ मिले तो नहीं लेनी चाहिए?" एक चमक से बोल पड़ी, "हाँ साहब मैंने सिखाया है." जब पूछा कि रोज़ी रोटी कैसे कमाती हैं? तोह उन्होंने बताया, लकड़ियाँ काटकर बेचकर पैसे कमाती हैं वह. सेठ ने उनके पति के लिए पूछा, माताजी ने बताया कि उनके पति का कई वर्ष पहले स्वर्गवास होगया था. सेठजी ने फिर पूछा कि "क्या हुआ उस संपत्ति का जो तुम्हारा पति पीछे छोड़कर गया?" औरत ने बहुत ही सरल जवाब दिया, "मैं अपंग या असहाय नहीं हूँ. मैंने वो ज़मीन और बैल बेचकर जो पैसा मिला, गांव की उन्नति के लिए दे दिया और अब लकड़ियां बेचकर अपना घर चला रही हूँ." सेठजी को जीवन की वात्सविकता समझ आ गई।
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